Sunday, November 18, 2018

आ गयी तू मुझे तेरा ही इंतज़ार था

आ गयी तू मुझे तेरा ही इंतज़ार था …
तुझे शायद नहीं पता होगा, मैं कितना बेक़रार था

खैर, पता है जब तू यहाँ नहीं थी
तो मेरे साथ क्या हो रहा था
मैं तो आँखें बंद करके सो रहा था
फिर भी लोग कहते हैं की मैं रो रहा था

अब उन नासमझों को कौन समझाए
क़ि वो मैं रो नहीं रहा था
वो तो अंदर का सैलाब बह रहा था
तुझे तो पता होगा कि मैं रोता नहीं
हर आंसू में तस्वीर है तेरी
इसीलिए मैं उनको खोता नहीं

अरे यार तू कुछ बोलती क्यों नहीं
पहले की तरह ये अश्क़ मेरे पोंछती क्यों नहीं

पता है जब तू गयी थी
तो सब बोलते थे
कि जो चले जाते हैं वो कभी लौटते नहीं
पय मुझे यकीं था, की तू आएगी
क्योंकि तू प्यार है मेरा
और जज़्बात कभी मरते नहीं

पर खफा हूँ तेरे उस धोखे से
तूने बिना मांगे जो दिया उस तोहफे से
माना मैंने कहा था
अपना दिल देदे मुझे
इसका ये मतलब नहीं
पगली दिल देके ज़िन्दगी देगी मुझे
जब होश आया डॉक्टर ने बताया सब,
रुक गयी मेरी सब सांसें तब
फिर फैसला किया
मैं भी आरहा हूँ तेरे पास
पर फिर डिल से आई आवाज़ तेरी
पगले हूँ तो मैं तेरे साथ

याद है तुझे
वो रास्ते जो
तुझे बहुत पसंद थे
अक्सर आज भी मैं
वहां से गुज़रा करता हूँ
जो तू मुझे बातें करती
उन रास्तों पर वही आवाज़ें सुना करता हूँ मैं

तू यहाँ नहीं थी
तो तेरे लिए कविता लिखता था
अक्सर कागज़ के पन्ने
हवा में फेकता था
अब तू कहेगी, ऐसा क्यों?
क्या मैं पागल हो गया था?

पर मैं उन पन्नो पर
तेरी ही खुशबु खोजता था
अगर इसे पागलपन कहते हैं,
तो हाँ यार मैं पागल हो गया था

-नितेश गौर (बृजवासी)

https://youtu.be/QSd3374_9lI

Saturday, November 17, 2018

आगे सफर था और पीछे हमसफर था

आगे सफर था और पीछे हमसफर था..
रूकते तो सफर छूट जाता और चलते तो हमसफर छूट जाता..
मंजिल की भी हसरत थी और उनसे भी मोहब्बत थी..
ए दिल तू ही बता,उस वक्त मैं कहाँ जाता...
मुद्दत का सफर भी था और बरसो का हमसफर भी था
रूकते तो बिछड जाते और चलते तो बिखर जाते....
यूँ समँझ लो,
प्यास लगी थी गजब की...
मगर पानी मे जहर था...
पीते तो मर जाते और ना पीते तो भी मर जाते.
बस यही दो मसले, जिंदगीभर ना हल हुए!!!
ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए!!!
वक़्त ने कहा.....काश थोड़ा और सब्र होता!!!
सब्र ने कहा....काश थोड़ा और वक़्त होता!!!
सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब...।।
आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर।।
"हुनर" सड़कों पर तमाशा करता है और "किस्मत" महलों में राज करती है!!
शिकायते तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्दगी,
पर चुप इसलिये हु कि, जो दिया तूने,
 वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता"..
अजीब सौदागर है ये वक़्त भी!!!!
जवानी का लालच दे के बचपन ले गया....
अब अमीरी का लालच दे के जवानी ले जाएगा. ......
लौट आता हूँ वापस घर की तरफ... हर रोज़ थका-हारा,
आज तक समझ नहीं आया की जीने के लिए काम करता हूँ या काम करने के लिए जीता हूँ।
बचपन में सबसे अधिक बार पूछा गया सवाल -
"बङे हो कर क्या बनना है ?"
जवाब अब मिला है, - "फिर से बच्चा बनना है.
“थक गया हूँ तेरी नौकरी से ऐ जिन्दगी
मुनासिब होगा मेरा हिसाब कर दे...!!”
दोस्तों से बिछड़ कर यह हकीकत खुली...
बेशक, कमीने थे पर रौनक उन्ही से थी!!
भरी जेब ने ' दुनिया ' की पहेचान करवाई और खाली जेब ने ' अपनो ' की.
जब लगे पैसा कमाने, तो समझ आया,
शौक तो मां-बाप के पैसों से पुरे होते थे,
अपने पैसों से तो सिर्फ जरूरतें पुरी होती है। ...!!!
हंसने की इच्छा ना हो...
तो भी हसना पड़ता है...
कोई जब पूछे कैसे हो...??
तो मजे में हूँ कहना पड़ता है...
ये ज़िन्दगी का रंगमंच है दोस्तों....
यहाँ हर एक को नाटक करना पड़ता है.
"माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती...
यहाँ आदमी आदमी से जलता है

Poetry

आ गयी तू मुझे तेरा ही इंतज़ार था

आ गयी तू मुझे तेरा ही इंतज़ार था … तुझे शायद नहीं पता होगा, मैं कितना बेक़रार था खैर, पता है जब तू यहाँ नहीं थी तो मेरे साथ क्या हो रहा था ...